Jai Peerian Di ---- Bol Sache Darwar Ki Jai

Ghadiali Deyo Nikal - Kaafi BABA BULLEH SHAH

घड़िआली दिओ निकाल

Kaafi : Baba Bulle Shah

घड़िआली दिओ निकाल नी,
अज पी घर आइला लाल नी| टेक|

घड़ी घड़ी घड़ीआल बजावे,
रैण वसल दी पिआ घटावे,
मेरे मन दी बात जे पावे,
ह्त्त्थों चा सुट्टे घड़ीआल नी|

अनहद बाजा बजे सुहाणा,
मुतरिब सुघड़ां तान तराना,
भुल्ला सौम, सलात, दुगाना,
मध पिआले देण कलाल नी|

मुख वेखण दा अजब नज़ारा,
दुःख दलिद्दर दा उठ गिआ सारा,
रैण बधे कुछ करो पसारा,
दिन अग्गे धरो दीवाल नी|

टूणे टामण किये बथेरे,
सिहरे आये वड-वडेरे,
तो जानी घर आइआ मेरे,
लख वर्हे रहां ओह्दे नाल नी|

बुल्ल्हिआ शौह दी सेज पिआरी,
नी मैं तारनहारे तारी,
किवें किवें मेरी आई वारी,
हुण विछड़ण होइआ मुहाल नी|

घड़िआल बजाने वाले को निकाल दो

इस काफ़ी में साधक के सद्गुरु से मिलने के आनन्द का वर्णन है| मिलन के क्षण बड़ी जल्दी बीतते हैं और घंटा बजाने वाला जब घंटा बजाकर समय की सूचना देता है, तो प्रिया को लगता है कि मिलन के क्षण घटते ही जा रहे हैं| इसलिए वह कहती है कि घंटा बजाने वाले इस घड़ियाली को निकाल दो| आज़ मेरा पिया, मेरा लाल, मेरे घर आया हुआ है| हर घंटे की ध्वनि करता हुआ यह घड़ियाली बार-बार घड़ियाल बजाता है| इस प्रकार वह मिलन-रात्रि का समय घटा रहा है| वह मेरे मन की बात समझ ले, यही अच्छा है, वरना उसके हाथ से घड़ियाल फेंक दो|

मिलन के इस क्षण में सुहावना अनहद बाजा बज रहा है| गायक, तान और तराना सभी सुन्दर हैं| ऐसी अवस्था में रोज़े, दरूद, नमाज़, शुक्रान आदि सब-कुछ भुल गया है| स्वयं कलाल (मुर्शिद) मुझे प्रेम-मद के प्याले भर-भर दे रहा है| उस मिलन आनन्द का क्या कहना? उसका मुख देखने का अद्भुत दृश्य था| दुख, दरिद्रता आदि सभी जाते रहे| कुछ ऐसा यत्न करो कि मिलन-रात्रि और लम्बी हो जाए जिससे मिलने का समय बढ़ जाए| अरे, कुछ नहीं तो आने वाले दिन के आगे दीवार रख दो, ताकि सूर्योदय न हो और मिलन का अधिकतम सुख प्राप्त हो सके|

उस प्रिय से मिलन के लिए मैंने बहुत-से टोने किए| बड़े-से-बड़े जादूगर बुलाए| अब जाकर मेरा प्राण-प्रिय मेरे घर आया है| इसलिए जी चाहता है कि लाखों वर्ष इसके साथ रहूं|

बुल्ला कहता है कि प्रिय पति की सेज बड़ी प्यारी है| मेरा उद्धार तो स्वयं उद्धारक ने किया है| कैसे-कैसे यत्न करने के बाद अब जाकर मेरी बारी आई है| बस, अब तो बिछुड़ना मुश्किल हो गया है|

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