Jai Peerian Di ---- Bol Sache Darwar Ki Jai

Main Kyonkar Jaavan Kaabe Nu - Kaafi BABA BULLEH SHAH

मैं क्योंकर जावां क़ाबे नूं

Kaafi - Baba Bulle Shah Ji

मैं क्योंकर जावां क़ाबे नूं,
दिल लोचे तख्त हज़ारे नूं| टेक|

लोकीं सज़दा क़ाअबे नूं करदे,
साडा सज़दा यार पिआरे नूं|

औगुण देख न भुल्ल मियां रांझा,
याद करीं उस कारे नूं|

मैं अनतारू तरन न जाणां,
शरम पई तुध तारे नूं|

तेरा सानी कोई नहीं मिलिआ,
ढूंढ़ लिया जग सारे नूं|

बुल्ल्हा शौह दी प्रीति अनोखी,
तारे औगुण हारे नूं|

मैं कैसे क़ाबा जाऊं

प्रभु अन्दर विराजमान है| उसे खोजने बाहर कहीं जाना व्यर्थ है| इस भाव को व्यक्त करते हुए इस काफ़ी में कहा गया है कि मैं क़ाबा की ओर कैसे जाऊ, क्योंकि मेरे दिल में तो इनायत शाह के तख्त हज़ारे की चाह है|
सामान्यत: लोग तो क़ाबा के सामने माथा टेकते हैं, लेकिन मेरा माथा तो यार के सामने ही झुकता है|

मियां रांझा, अवगुण देखकर मुझे भूल मत जाना, बल्कि उस स्मरणीय कार्य को याद रखना कि सृष्टि-रचना के समय सृष्टि में भेजते हुए वचन दिया था कि तुम्हें वापस लाने के लिए स्वयं जगत में आऊंगा|

मैं अनाड़ी हूं, मुझे तैरना नहीं आता, भला यह भवसागर कैसे पार करूंगा? मेरी लाज रखना| मुझे तैराकर पार कर देना तथा मुझे उबार लेना|

मैंने सारा संसार ढूंढकर देखा, लेकिन तेरे समान और कोई नहीं मिला|

शौह की प्रीति तो बड़ी अनोखी है| जिस पर वह प्रीति करता है, उस अवगुणों से भरे का भी उद्धार कर देता है| सद्गुरु (मुर्शिद) भगवान का रूप है, जो आत्मा को हाथ पकड़कर पात उतार देता है|

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