Jai Peerian Di ---- Bol Sache Darwar Ki Jai

Paani Bhar Bhar Gaeeyan Sabhe - Kaafi BABA BULLEH SHAH

पानी भर-भर गइयां सब्भे

Kaafi - Baba Bulle Shah Ji

पानी भर-भर गइयां सब्भे आपो अपनी वार| टेक|

इक भरन आइयां, इक भर चल्लियां,
इक खलियां ने बाहं पसार|

हार हमेलां पाइयां गल विच,
बांहीं छणके चूड़ा,
कन्नीं बुक-बुक झुम्मर बाले,
सभ आडम्बर पूरा,
मुड़ के शौह ने झात न पाई,
एवें गिआ सिंगार|

हत्त्थी मैंहदी, पैरीं मैंहदी,
सिर ते धड़ी गुंधाई,
तेल, फुलेल, पानां दा बीड़ा,
दंदीं मिस्सी लाई,
कोई जे सद्द पिओ ने गुज्झी,
विस्सरिआ घर बार|

बुल्ल्हिआ, शौह दी पंध पवें जो -
तां तूं राह पछाणे,
"पौन सतारां", पासैं मंगिआ,
दा पिआ त्रै काणे,
गूंगी, डोरी, कमली होई,
जान दी बाज़ी हार|

पानी भर-भरकर गईं सभी

साधक चाहे जितना यत्न करे, मार्गदर्शक गुरु के बिना प्रयास सफल नहीं होते| इसी भाव का वर्णन करते हुए साईं लिखते हैं कि सभी सखियां पानी भर-भरकर चली गईं| कुछेक पानी भरने के लिए अभी-अभी आई हैं और कुछेक भरकर चली जा रही, हैं| कुछेक ऐसी भी हैं, जो बाहें पसारे खड़ी हैं|

प्रिय को प्राप्त करने के लिए सभी श्रृंगार किया है, गले में हार-हमेलें सजा ली हैं, बांहों में चुड़े छनछना रहे हैं, कानों में बड़े-बड़े झूमर हैं, बालें हैं यानी कि श्रृंगार का सभी आडम्बर पूरा है, किन्तु प्रिय पति ने देखा तक नहीं और समूचा श्रृंगार व्यर्थ हो गया|

श्रृंगार के अतिरिक्त मैंने हाथों में मेहंदी रचाई, पैरों में भी मेहंदी रचाई, सिर भी ख़ूब अच्छी तरह गुंदाया, बालों में ख़ुशबूदार तेल डाला, दांतों में मिस्सी लगाई और होठों को भी रंग लिया| पता नहीं (मृत्यु का) क्या गृढ़ सन्देश आया कि सारा घर-बार ही बिसर गया|

बुल्लेशाह कहते हैं, यदि तुम प्रिय पति के मार्ग पर चलो तभी तो उस मार्ग को पहचान सकोगे| लेकिन हुआ यह कि (चौसर के खेल में) मैंने मांगा 'पौ बारा' और दांव पड़ा 'तीन काने'|अर्थात प्रिय मिलन की जगह प्रिय विरह ही हाथ आया| अब मैं गूंगी, बहरी और पगली हो गई हूं| सच तो यह है कि मैंने जीवन की बाज़ी हार दी|

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