Jai Peerian Di ---- Bol Sache Darwar Ki Jai

Paya hai Kichh Paya Hai - Kaafi BABA BULLEH SHAH

पाया है, किछु पाया है

Kaafi - Baba Bulle Shah Ji

पाया है किछु पाया है
मेरे सतिगुरु अलख लखाया है| टेक|

कहूं बैर पड़ा कहूं बेली है,
कहूं मजनूं है कहूं लेली है,
कहूं आप गुरु कहूं चेली है,
आप आपका पंथ बताया है|

कहूं महजन का करतारा है,
कहूं बणिआ ठाकरद्वारा है,
कहूं बैरागी जयधारा है,
कहूं सेखन बणि आया है|

कहूं तुरक मुसल्ला पढ़ते हो,
कहूं भगत हिन्दू जप करते हो,
कहूं घोर घुंडे में पड़ते हो,
कहूं घर-घर लाड़ लड़ाया है|

बुल्ल्हा शहु का मैं बेमुहताज़ होइआ,
महाराज मिल्या मेरा काज होइआ,
दरसन पिया का मुझे इलाज होइआ,
आप आप में आप समाया है|

पाया है, कुछ पाया है

पूर्ण अद्वैत की भावाभिव्यक्ति करती हुई इस काफ़ी में बताया गया है कि ज्ञान प्राप्त हो जाने की अवस्था में अनेकता में व्याप्त एकता के दर्शन होते हैं| उसी अवस्था का वर्णन करते हुए कहा गया है कि मैंने कुछ पा लिया है, मेरे सतगुरु ने मुझे वह अलख़ प्रभु दिखा दिया है|

सब-कुछ में उसी का प्रसंग है, इसे बताते हुए साईं कहते हैं कि प्रभु कहीं बैर करता है और कहीं मित्र भी है| कभी वह मजनूं नज़र आता है, तो कभी लैला| वह स्वयं गुरु भी है और शिष्या भी| उसने स्वयं अपने-आप को अपने ही पन्थ का परिचय दिया है|

वह कहीं मस्जिद में विराजता है तो कहीं उसके लिए ठाकुरद्वारा बना हुआ है| वह स्वयं ही कहीं (मस्जिद और मन्दिर से बाहर) जटाधारी बैरागी का तरह घूमता नज़र आता है और कहीं शेख़ का रूप धारण करता है|

हे प्रभु, तुम्हारी लीला अपार है| तुम कहीं तुरक बनकर, मुसल्ला पर बैठकर नमाज़ पढ़ते हो, तो कहीं भक्त बनकर जप करते हो| कभी घुंघट के घोर अन्धकार में चले जाते हो और कभी घर-घर जाकर सभी से लाड़-प्यार करते हो|

बुल्ला अब अपने अहम् से मुक्त हो गया है| मुझे महाराज मिले और मेरा काज ( कार्य, विवाह) सम्पन्न हो गया, प्रिय के दर्शन से मेरे सभी रोग कट गए हैं, वह सर्वव्यापक स्वयं अपने-आप में ही समाया हुआ है|

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